Monday, November 19, 2012

Singhanpura Aur Hamlog- From Pardesh

Singhan Pura is slowly growing ...not in pace of Delhi,Noida...or India GDP rate.

Things are settling down slowly as India Growing but i believe we are not adding more values what we can do .

Moreover we are missing bridge who can connect us with village.

People of there need push, advoation, knowledge of what real,right for current era, i know we are so far we can not stay longer there & do  social kranti or political connect.

What we can do better i believe - Listen them....share our thoughts when get chance, contribute to guide new generation, financialy help some poor students, i am sure some day Singahnpura will be in Map of India for great reason.

Friday, October 26, 2012

ब्रह्म आ भ्रम

ब्रह्म आ भ्रम में ज्‍यादा अंतर नइखे, उच्‍चारण के लिहाज से। ब्रह्म के ए गो माने सबकुछ होला। लेकिन तनिका सा असावधान हो जाईं त उ भ्रम हो जाला। मतलब कुछुओ बा कि ना ई कहल मुश्किल हो जाला। गांव के पोखरा पर बरम्‍ह लोग के भरमार देखि के मन में इहे खयाल आवता कि लोग भरमि गइल बा। ना त कु‍छु ठीक से सोचि पावता ना कइ पावता। टोटका, टोना में ज्‍यादा भरोसा हो चलल बा। एह तथ्‍य के साक्षरता से जोडि़ के देखल जाउ त बड़ा चिंता होता। हमनी के पढि़ लिखि के समझदार हो तानी जा कि नासमझ। ढेर दिन पहिले के ना बात करबि आज से खाली 20 साल पहिले चलि जाईं त पोखरा पर खाली एकहि बरम्‍ह रहुअन सतई के। सतई टोल के गांव में बहुत अच्‍छा निगाह से ना देखल जाला। दूसरका ए गो जायपाल बरम्‍ह। लेकिन अब त सब जगह बरम्‍हे बरम्‍ह बाड़े। लोगन्हि के अपना पर से, पास पड़ोस से भरोसा कम भइल जाता। लोग ब्रह्म के समझे लागल बा या लोग में भ्रम बढ़ल जाता।

Thursday, June 28, 2012

जगामहुआ में अब खली खेत बा . लेकिन अभी जब सब तरफ यूरो कप के धूम बा हमरा गाँव के फुटबाल मन परता . ओहिजा बड़का फिल्ड रहे . जब हमनी के दूसरा तीसरा में पढ़ात होखब जा गाँव में दू गो बड़का मैदान रहे। एगो  टा ड़ी पर  आ एगो  जागा महुआ .
एह बेर गाँव गइ नी  हाता रोड लाउकल हा . पीच रोड . स्टेशन से 15 मिनट में फट से गाँवे . हाई स्कूल  भी  हो गईल  बा लगभग . बिजली  आ गईल बिया. खूब लोग टीवी के आनंद लेता . खेल के मैदान बिना सब सून लागता . आइपीएल  नियन अब खेल खातिर कटिया के इंतजार होता. यानि खेत खाली होई त खेल होई। सुननी  हा जे लोग लागल बा जल्दिये खेल के मैदानों गुलज़ार होई.

Tuesday, March 22, 2011

मथुरा आ बनारस के ना ..कमेसर के पेड़ा

हहवा पीपर हमनी के जनम से पहिले ढहि गइल रहे। लहिया पीपर हमनी के आगे ढहल। दीदोदाई, ए गो नीमि के फेंड़ कहात रहे। ओहिजे कमेसर के दोकानि रहे। रहे कहल ठीक नइखे, बिया अबहीं।
हालांकि, जब हमनी के लइका रहुईं जा, उनकर बाबूजी दुकान पर बइठत रहुअन।हमनी खातिर दुकान के नाम रहे तातो यानी ततवा के दुकानि। दुकानि बहुते छोट रहुए। घुसे के दरवाजा बिल्‍कुल बड़ दालानि के जंगला एइसनि। नीहुरि के भीतरी जाएके पड़त रहे। रासन के समान संगे पान के एकमात्र ठीहा। लेकिन पान आ, रासन से कहीं जयादा मसहूर उहां के पेड़ा रहे। अलग स्‍वाद। दुर्लभ स्‍वाद। दुनिया में सिर्फ सिंघनपुरा में आ ओहिजो सिर्फ कमेसर के दुकानि पर। ओकर स्‍वाद ओइसने रहे जइन सहतू के समोसा, आ अलगू के चाटपटी आ लकठो के। इ सब बनारस के लवंग लता और बंगाल के रसगुल्‍ला पर आजो भारी बा।
ददरी आ दसहरा में दीदो दाई तर खास चूल्‍हा जमे। घीवही और गुरही जिलेबी के। अब दीदो दाई के नीमि नइखे। ततवा के पुरनका घर भी नइखे। लेकिन ततवा के दोकानि बांचल बिया। कमेसर के बाबूजी नइखन, लेकिन उनकर पेड़ा के स्‍वाद बांचल बा। भोपाल में गांव से ले आइल रहुंवी सब पूछता कहां के पेड़ा ह। मथुरा के कि, बनारस के ...... कहि के मन खुश् होता, इ हमरा कमेसर के पेड़ा ह, हमरा गांव के पेड़ा ह।

Monday, May 3, 2010

गायब हो रहल बा गाँव

सिघनपुरा स्मृति से गायब हो रहल बा । अब ओकरा जगह पर पटना बा । बनारस बा। कोल्कता बा । भोपाल बा । दिल्ली बिया। खूब मन बा गाँव जाएके । लेकिन करीं का। छुट्टी छोट बिया । एक दू दिन में कहाँ कहाँ jaayii

Saturday, February 7, 2009

ए गो नीहोरा

अगर रउआ में से केहू के भीरी, बड़का सिंघनपुरा से जुड़ल जानकारी, अउरी लोगन के संपर्क भा ई मेल, फोन नं होखे त हमरा के एह ई ठिकाना पर पठा दीं।
lalbahadur9@yahoo.com
रउआ सब के अग्रिम आभार

ग्रामोत्‍सव 2008 की स्‍मृतियां

ग्रामोत्‍सव यानी अपना गांव में नवहन के बीच एक दिन। इ सिलसिला अक्‍तूबर 2006 में शुरू भइल। कोशिश बा कि बहरी भितरी जे भी होखे साल में कम से कम एक बार एक दिन ही खातिर आओ। सबकरा संगे मीलो भेंटो। अपना अनुभव के अपना लोगन के बीच राखे- बांटे। प्राथमिक विद्यालय बड़कासिंघनपुरा में अइसने एगो दिन के स्‍मरण बा।


छोट भाई बहिन, के उछाह देखत बनता। सबमें जाने के सीखे के बोल आ बतियावे के आपन बात कहे के गजब उत्‍साह लउकत बा।
एहिजा बिजली लइखे, सड़क आवे के इंतजार बा, स्‍कूल अब खाड़ होखे के कोशिश में बा लेकिन जबन बात एहिजा सदा से रहल बा ज्ञान के दुनिया में रहेके। उ भूख अभियो जिंदा बा।






एक मौका पर लइका लोग से ज्‍यादा बढि़ चढि़ के लइकी हिस्‍सा लीहली हा स। लेकिन लगन सबका में बा। आगि अभियो बा आंच जियवले रहे के बा।
सबके खातिर एगो मंच आ मौका चाहीं। सराहे आ तनी समझावे वाला सहयोगी हाथ। फेरु त रउआ सब। देखत रहि जाइब इहिजा का होता।