Friday, October 26, 2012

ब्रह्म आ भ्रम

ब्रह्म आ भ्रम में ज्‍यादा अंतर नइखे, उच्‍चारण के लिहाज से। ब्रह्म के ए गो माने सबकुछ होला। लेकिन तनिका सा असावधान हो जाईं त उ भ्रम हो जाला। मतलब कुछुओ बा कि ना ई कहल मुश्किल हो जाला। गांव के पोखरा पर बरम्‍ह लोग के भरमार देखि के मन में इहे खयाल आवता कि लोग भरमि गइल बा। ना त कु‍छु ठीक से सोचि पावता ना कइ पावता। टोटका, टोना में ज्‍यादा भरोसा हो चलल बा। एह तथ्‍य के साक्षरता से जोडि़ के देखल जाउ त बड़ा चिंता होता। हमनी के पढि़ लिखि के समझदार हो तानी जा कि नासमझ। ढेर दिन पहिले के ना बात करबि आज से खाली 20 साल पहिले चलि जाईं त पोखरा पर खाली एकहि बरम्‍ह रहुअन सतई के। सतई टोल के गांव में बहुत अच्‍छा निगाह से ना देखल जाला। दूसरका ए गो जायपाल बरम्‍ह। लेकिन अब त सब जगह बरम्‍हे बरम्‍ह बाड़े। लोगन्हि के अपना पर से, पास पड़ोस से भरोसा कम भइल जाता। लोग ब्रह्म के समझे लागल बा या लोग में भ्रम बढ़ल जाता।