ब्रह्म आ भ्रम में ज्यादा अंतर नइखे, उच्चारण के लिहाज से। ब्रह्म के ए गो माने सबकुछ होला। लेकिन तनिका सा असावधान हो जाईं त उ भ्रम हो जाला। मतलब कुछुओ बा कि ना ई कहल मुश्किल हो जाला। गांव के पोखरा पर बरम्ह लोग के भरमार देखि के मन में इहे खयाल आवता कि लोग भरमि गइल बा। ना त कुछु ठीक से सोचि पावता ना कइ पावता। टोटका, टोना में ज्यादा भरोसा हो चलल बा। एह तथ्य के साक्षरता से जोडि़ के देखल जाउ त बड़ा चिंता होता। हमनी के पढि़ लिखि के समझदार हो तानी जा कि नासमझ। ढेर दिन पहिले के ना बात करबि आज से खाली 20 साल पहिले चलि जाईं त पोखरा पर खाली एकहि बरम्ह रहुअन सतई के। सतई टोल के गांव में बहुत अच्छा निगाह से ना देखल जाला। दूसरका ए गो जायपाल बरम्ह। लेकिन अब त सब जगह बरम्हे बरम्ह बाड़े। लोगन्हि के अपना पर से, पास पड़ोस से भरोसा कम भइल जाता। लोग ब्रह्म के समझे लागल बा या लोग में भ्रम बढ़ल जाता।
Friday, October 26, 2012
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