Saturday, February 7, 2009

ए गो नीहोरा

अगर रउआ में से केहू के भीरी, बड़का सिंघनपुरा से जुड़ल जानकारी, अउरी लोगन के संपर्क भा ई मेल, फोन नं होखे त हमरा के एह ई ठिकाना पर पठा दीं।
lalbahadur9@yahoo.com
रउआ सब के अग्रिम आभार

ग्रामोत्‍सव 2008 की स्‍मृतियां

ग्रामोत्‍सव यानी अपना गांव में नवहन के बीच एक दिन। इ सिलसिला अक्‍तूबर 2006 में शुरू भइल। कोशिश बा कि बहरी भितरी जे भी होखे साल में कम से कम एक बार एक दिन ही खातिर आओ। सबकरा संगे मीलो भेंटो। अपना अनुभव के अपना लोगन के बीच राखे- बांटे। प्राथमिक विद्यालय बड़कासिंघनपुरा में अइसने एगो दिन के स्‍मरण बा।


छोट भाई बहिन, के उछाह देखत बनता। सबमें जाने के सीखे के बोल आ बतियावे के आपन बात कहे के गजब उत्‍साह लउकत बा।
एहिजा बिजली लइखे, सड़क आवे के इंतजार बा, स्‍कूल अब खाड़ होखे के कोशिश में बा लेकिन जबन बात एहिजा सदा से रहल बा ज्ञान के दुनिया में रहेके। उ भूख अभियो जिंदा बा।






एक मौका पर लइका लोग से ज्‍यादा बढि़ चढि़ के लइकी हिस्‍सा लीहली हा स। लेकिन लगन सबका में बा। आगि अभियो बा आंच जियवले रहे के बा।
सबके खातिर एगो मंच आ मौका चाहीं। सराहे आ तनी समझावे वाला सहयोगी हाथ। फेरु त रउआ सब। देखत रहि जाइब इहिजा का होता।



Saturday, January 10, 2009

गांव ह से गढ् ह

इ कहाउत हमनी के जब से होस संभरले बा तबे से सुनता। गांव छोडि़ के जाये के परंपरा कतना पुरान बा एकर पता लगावल तनिक कठिन काम बा। लेकिन अइन अनुमान बा कि एह गांव के अभी चउदहवीं पीढ़ी चल रहलि बिया। अइसन कहलजाला कि दू पीढ़ी के बीच के फासला 20 साल के होला। अब बढि़ गइल होई। लेकिन इ एगा पक्‍का पैमाना बा कवनो बस्ती के उमीरि पता करेके।
त हमनी के गांव के उमरी चउदह गुणा बीस यानी लगभग तीन सौ साल भइल।
हमनी का ओर गांव के जवन बनावट बा ओह में ए गो प्रमुख जाति हा बाकी सब सहायक जाति के भूमिका बा। आस पास के गांवन्हि के देखबि त एकर अंदाजा लागि जाई जइसे डुमरी में भूमिहार, छोटका राजपुर में राजपूत, चक्‍की में यादव, काजीपुर में मुसलमान आदि। लेकिन हर गांव में हर जाति के कमोबेस उपस्थिति बा।
जब से गांव बा तब से इहां उहां आवाजा‍ही बा। खास कइ के पिछला तीन चार पीढ़ी के बारे में त हमनी के जानते बानी जा। इ सब आवाजाही के कारन रोजी रोटी बा। एह वजह से चाहे ज जंहवा रहे लेकिन गांव में रहल बा ता गांव ओकरा भीतर जिंदा बा। जे गांव से निकलल बा ओकरा में से बहुत लोग के अब कवना रिश्‍ता नइखे। लेकिन उ परिवार जहां भी होई अपना बड़ जेठ से एह के गांव के बारे में सुनले जनले जरूर होई।
हम कवनो लमहर बात नइखीं कइल चाहत लेकिन हमरा इ लागता कि हमनी के जवना गांव जवार के हवा माटी पानी से बनल बानी जा, ओकरा प्रति हमनी के कुछ दाय भी होला। हालांकि मनुष्‍य के नाते पूरा धरती हमनी के घर दुआर बा आ जहां भी रहेके चाहीं ओहिजा रचि बसि के रहे के चाहीं। लेकिन जहां से निकलल बानीं जा आहिजो खातिर हमनी के सोचे के चाहीं। कवनो दान पत्‍तर के बात नइखीं करत हम खाली अतनो हो सके कि साल दू साल में एक बार ओहिजा पहुंचीं जा तबो बहुत कुछ बनी संवरी।
रउआ सब का सोचतानीं। कहां बानीं आपन बात विचार भी एह चउक पर भेज सकेनीं।
अभी अतने बाकी फेरु कभी।