हालांकि, जब हमनी के लइका रहुईं जा, उनकर बाबूजी दुकान पर बइठत रहुअन।हमनी खातिर दुकान के नाम रहे तातो यानी ततवा के दुकानि। दुकानि बहुते छोट रहुए। घुसे के दरवाजा बिल्कुल बड़ दालानि के जंगला एइसनि। नीहुरि के भीतरी जाएके पड़त रहे। रासन के समान संगे पान के एकमात्र ठीहा। लेकिन पान आ, रासन से कहीं जयादा मसहूर उहां के पेड़ा रहे। अलग स्वाद। दुर्लभ स्वाद। दुनिया में सिर्फ सिंघनपुरा में आ ओहिजो सिर्फ कमेसर के दुकानि पर। ओकर स्वाद ओइसने रहे जइन सहतू के समोसा, आ अलगू के चाटपटी आ लकठो के। इ सब बनारस के लवंग लता और बंगाल के रसगुल्ला पर आजो भारी बा।
ददरी आ दसहरा में दीदो दाई तर खास चूल्हा जमे। घीवही और गुरही जिलेबी के। अब दीदो दाई के नीमि नइखे। ततवा के पुरनका घर भी नइखे। लेकिन ततवा के दोकानि बांचल बिया। कमेसर के बाबूजी नइखन, लेकिन उनकर पेड़ा के स्वाद बांचल बा। भोपाल में गांव से ले आइल रहुंवी सब पूछता कहां के पेड़ा ह। मथुरा के कि, बनारस के ...... कहि के मन खुश् होता, इ हमरा कमेसर के पेड़ा ह, हमरा गांव के पेड़ा ह।
its true..kameshar ka peda wow very nice
ReplyDelete